1. मारवाड़ी सम्मेलन मुम्बई की ओर से सर्वोतम राजस्थानी साहित्यकार पुरस्कार से 1990 में सम्मानित। 
2. राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर की ओर से 1991 में पद्य पुरस्कार से सम्मानित। 
3. स्वाधिनता दिवस 1992 में जिला कलेक्टर नागौर की ओर से सर्वश्रेष्ठ साहित्यकार सम्मान से सम्मानित। 
4. आध्यात्मिक क्षेत्र पर्यावरण संस्थान जोधपुर की ओर से 1993 में रूंख भायला पुरस्कार से सम्मानित। 
5. हिन्दी अकादमी हैदराबाद की ओर से 1994 में काव्य शास्त्री की उपाधि से सम्मानित। 
6. राजस्थान सरकार की ओर से 1995 में सर्वोतम वानिकी लेखन पुरस्कार से सम्मानित। 
7. जैन युवक मण्डल डेह की ओर से 1996 में राजस्थानी साहित्य के लिए सम्मानित। 
8. वर्ष 2002 के राजस्थानी के राष्ट्रीय लखोटिया पुरस्कार से सम्मानित। 
9. 5 जनवरी 2003 में राजस्थानी भाषा विकास मंच संस्थान जालोर की ओर से डी.आर.लिट् की मानद् 
10. उपाधि से सम्मानित। 
11. 14 जनवरी 2003 में वीर वर राव अमरसिंह राठौड़ की जयंति पर महामहिम राज्यपाल श्री अंशुमानसिंह की ओर से राजस्थानी भाषा की उत्कृष्ठ सेवाओ के लिए सम्मानित। 
12. 29 अक्टूम्बर 2003 को प्रदेश के मुख्यमंत्री के कर कमलों द्वारा राजस्थानी भाषा की उत्कृष्ठ सेवाओं के लिए राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर के वार्षिक समारोह में सम्मानित। 
13. 11 जनवरी 2004 का डेह ग्रामवासियों की ओर से राजस्थानी भाषी की श्रेष्ठ सेवाओं के लिए नागरिक अभिनन्दन। 
                  
                      मजदूर सतसई
                      दूहा
                      गत विकास  थारै  गुणां, सारा काज सरेह।
हीमत  मजूर  हालियां, कव जण नमन करेह।।1।। 
                        दाखूं वड़िया देनग्या, मैंतकस मजदूर।
                        कामगारियां कीरती, मुलकां थई मसूर।।2।। 
                        
                        नाणा धोणा नित  नहीं, दाणां मन री दाझ।
                        जमगी  बाटां  मेल  जुत, खोरै नख सूं खाज।।3।। 
                        
                        नहचौ नाहंी निबटबा, पेख सोरकौ पूर।
                        कुरलौ  पांणी  करणियौ, मूंडौ साफ मजरू।।4।। 
                        
                        मंजण दांतण नीं  मिलै, नीं साबू नीं तेल।
                        कर धनिकां कठपूतली, खलक  मजूरी  खेल।।5।। 
                        
                        काच नहीं नीं  कांगस्यौ, नहीं पाऊडर नांव।
                        भर जोबन में भूलगौ, अंग  मजूर  उछाव।।6।। 
                        
                        कामण नैं हाका  करै, वेगा रोट बणाव।
                        अणूंतोई  ज आकरौ, मालिक तणौ सभाव।।7।। 
                        
                        मौड़ौ होयां मालिकां, डर दाखल डरपाय।
                        मांग  करंत  मजूरिया, इधक अड़वड़ै आय।।8।। 
                        
                        सुण ऐ बातां  सायघण, चूल्लौ लै चेताय।
                        साग  रोटियां  सोच  में, बेगी त्यार कराय।।9।। 
                        
                        सांसो तन मन सोरकौ, धन रौ रहे  विजोग।
                        
                        अन री चिंता आवगी, जूण  मजूरां  जोग।।10।। 
                        
                        आफल खिपतां कलपतां, दीह देनगी जाय।
                        खिलकां  जीवण  ना खुसी, मुलक मजूरी मांय।।11।। 
                        
                        साग न पूरो  सीझवै, रहवै कांमण रींच।
                        खातावल  दल रोटियां, काची रह अद बीच।।12।। 
                        
                        आलू कांदा आंणिा, झोल साग अणमाप।
                        कोकल  उंतावल  करै, पांवण पैला बाप।।13।। 
                        
                        कांयस नितदिन कांमणी, होवै कोकल हूंत।
                        ठोला  दै भर चूंटिया, और भचेड़ै ऊत।।14।। 
                        
                        गलै न उतरै  बापरै, रोतां टाबर रोट।
                        दारा  ऊपर  दाकलां, देवै गाल्यां दोट।।15।।
                        
                        रातौ  हुयगौ  रीस  में, डुसक्यां भर भर डील।
                        नैनकिया  छै नासमझ, दालद रहियौ पील।।16।। 
                        
                        तीज तिंवारा वापरै, धिरत वनापत गेह।
                        पड़ियौ  कित  छै पींणनैं, दूध मजरां देह।।17।। 
                        
                        गलै उतारै गासिया, उंतावल में कंत।
                        चेतौ  नहीं  चबाण  रौ, तन कै देसी तंत।।18।। 
                        
                        चटणी कांदौ सोगरा, फुरती रहियौ फांद।
                        थेली  पोलीथीन  में, दी दौपारी बांध।।19।। 
                        
                        टाबरिया दोलूं कहै, जातां बापू कांम।
खांवण चीजां मोकली, लेता आज्यौ सांम।।20।।
                      लास्यूं लास्यूं कर गयौ, मोलै मनां मजूर।
दोरी कितरी देनगी, दीठ टाबरां दूर।।21।।
                      बातां सोचै बेवतौ, मारग मांय मजूर।
                        रोड कियौ बदनेकियां, नेकी वालौ नरू।।22।।
                      हफ्तौ मिलियां ही हुवै, चून बापरत चीज।
                        रद जीवण बिन रोकड़ां, खलक मजूरी खीझ।।23।।
                      अज कालै करतौ अवस, कढा रयौ निज कांम।
                        मालिक मरजी रै मजुब, देय मजूरां दांम।।24।।
                      निसकारा घण न्हाखतां, टुर वै रीता टेंट।
                        ठेकेदारी ठग पणै, पूरै नीं पेमेंट।।25।।
                      दमड़ी बिन जीवण दुखी, सूखै चमड़ी सोय।
                        जमड़ी पैदा नी जठै, हरख कठास्यूं होय।।26।।
                      डांडी खाथा डग भरै, मोड़ौ डर मन मांय।
                        तपती साम्ही तावड़ौ, अंग पसेवौ आय।।27।।
                      किती किताबां कापियां, मूंघी मिलै बजार।
                        इसकूलां री ड्रेसड़ी, लेय मजूरां लार।।28।।
                      प्राईवेट ज पढ़ाईयां, गजब चढावै गैड़।
                        मालीदसा मजूर री, फीसां दै फंफेड़।।29।।
                      पूनौ बरसां पांच रौ, सुगनी बरसां सात।
                        तीन बरस रौ तोलियौ, रमै घां दिन रात।।30।।
                      मिलता मजूर मास्टर, एक भुलावण देय।
                        पूना सुगनी नैं अबै, पढण खिनावौ केय।।31।।
                      थोड़ौ मोड़ौ होवियां, मूंडो देय उतार।
                        मालिक घाल मजर रै, गाल्यां रौ गलहार।।32।।
                      फूहड़ फोरौ बोलणौ, आदत ठेकेदार।
                        मजबूरी मजदूर री, एक गरीबी लार।।33।।
                      ऊभौ सुणवै अपसबद, घुण नीची घालेह।
                        नहीं ढुकाणौ कांम पै, सोरकियौ सालेह।।34।।
                      अतरौ मोड़ौ और थूं, कर दिनौ जे काल।
                        नहीं ढुकास्युं कांम पै, मालिक कहै दकाल।।35।।
                      और न कोई आसरौ, कहै जोड़ कर कांप।
                        राखौ मया मजूरियां, अनदाता हो आप।।36।।
                      ाायौड़ा मोटा घणी, होवै हिरदै हीण।
                        लागी मतलब री लगन, तूटै नांही तीण।।37।।
                      रहवै पासौ राज में, रासौ रिसवत रीझ।
                        भारत हालत बिगड़ी, खरीज आवै रीझ।।38।।
                      गैंती ऊंडी घालतां, हांकर लगै हबीड़।
                        काम ढूकियौ कोड सूं, जोरां देय झपीड़।।39।।
                      च्यारूंमेर ज चौकड़ी, माप दियौ मजदूर।
                        खातावल में खोदनै, नेकी चमकै नूर।।40।।                      
                      न्यारी न्यारी नाप री, चोकड़िया री चांक।
मैंणत करै मजूरिया मालिक मांडै आंक।।41।।
                      आदकाल सूं आजलग, काम मजूर करेह।
                        अखै पेज इतियास रा, मालिक माल चरेह।।42।।
                      सत तेता द्वापर दिनां, कलजुग री के बात।
                        सोसण हुवौ मजूर रौ, इतियासां अखियात।।43।।
                      नहीं जात मजूदरी री, पांत एकसी पीड़।
                        वरग कहीजै विस्व में, भोगण दुविधा भीड़।।44।।
                      सतजुग में केई सगस, गोता खाया गांव।
                        दबगा नीचै भाव दिल, नेक मजूरी नांव।।45।।
                      तेताजगु मांही त दिन, करता मालिक कोप।
                        ऐक नहीं अन्याव री, लाखीूं लीकां लोपा।।46।।
                      कदर अरूं नी कायदौ, चाहत चकनाचूर।
                        द्वापर रा दिन देखिया, मोला दुखी मजूर।।47।।
                      नीं सकैं सोसण करत, लगी न बोल लगांम।
                        कलजुग रौ कै केवणौ, रयौ न मालिक राम।।48।।
                      दीन हीण तन देखता, नांही चमकत नरू।
                        वैदिक काल बतावियौ, मोलौ मन मजदूर।।49।।
                      मांनी 'मोहनजोदड़ौ' सिन्धू घाटी साथ।
                        सूग राखती सभ्यता, हेत मजूरां हाथ।।50।।
                      अवल लिणै 'अमेरिका', नेगम दुनिया नांव।
                        मजदूरां मन मोलपण, ठौर ठौर रै ठांव।।51।।
                      ऊंची बातां आखवै, मौजां धनिक मनाय। 
                        भूख घणी 'बरतानियै', मजदूरां घर मांय।।52।।
                      अपणी हैसत ऊपरां, फूलै 'इटली' 'फ्रांस'।
                        सोसम मजूदरां सिरै, घमी मिलावै घांस।।53।।
                      जीव बड़ौ 'जापान' जग, राजी कहवै 'रुस'।
                        मालिक मजदूरां रगत, देखौ रहिया चूस।।54।।
                      मोला 'इरान' मजूरिया, धनवाना बड धाक।
                        पाड़ै मजूर माजनौ, ओछापणौ 'इराक'।।55।।
                      दीठ दौड़ा'र देखलौ, अवनी आरम पार।
                        मजदूरां मैंणत भलै, पोची मिलै पगार।।56।।
                      धन कारण हुयगा घणी, 'जरमनिया'सैंजोर।
                        मजदूरां पांती मिलै, कसमस खांडी कौर।।57।।
                      ठोठीपणै ठगावसी, मैंणत भलै मजूर।
                        चावा मालिक चातरक, पईसा सूं भरपूर।।58                      
                      ग्रीषम
सिर तावड़ तन साल्हवै, लूवां लागी लार।
पड़िया छाला पगतल्यां, मजदूरी री मार।।59।।
                      माथै बोझ मजूरियां, करतां दाकल कांम।
                        झूपड़ चौमासै जियां, चवै पसीनौ चांम।।60।।
                      तन तपतौ तपती तिरस, भूख तपत भड़काय।
                        तपती पांणी रोटियां, खिपत मजूरी खाय।।61।।
                      भरियौ कूंडौ भार सूं, ऊना बलै अनाप।
                        बलतै सिर पग बीणती, सुणकर रहिया कांप।।62।।
                      हालत आई हांफणी, करै कुजरवौ कांम।
                        तोख राखतां ही तलै, घमी मजूरां धांम।।63।।
                      थाकेलौ उतरै नहीं, सूतां तपती रात।
                        डील कुलै माथौ झुलै, ऊठंतै परभात।।64।।
                      बजियां नें ही तप बयल, तावण लागै तन्न।
                        चांक चौकड़ी चोल चख, मोल मजूरां मन्न।।65।।
                      करबा लागै कमतरां, रिव दस बजियां रीस।
                        कर डर चिलकै कारणै, छाजौ आंख्यां सीस।।66।।
                      ग्यारै बजियां गिगन रिव, जोणौ मुसकल जांण।
                        तपी तगारी फावड़ौ, मजदूरां कमठांण।।67।।
                      बारै बजियां बयल बल, तप तावड़ियौ तीर।
                        छोडै सूर मजूर छित, घाव करण गंभरी।।68।।
                      हिक बजियां तावड़ हुलक, सबली राखै सोय।
                        चुसकारौ मजदूर चित, करै समठ ना कोय।।69।।
                      खीरा ज्यूं तपिया खा, बल कूंडा बेपार।
                        बलबलतां हाथां बिचै, भरै सांवठौ भार।।70।।
                      तप सिर सीधौ तावड़ौ, कीधौ थट कूंडेह।
                        जरणा कारण ही झरै, देख पसीनौ देह।।71।।
                      सांवल तन माथै सजी, गौर खंख गरमास।
                        परसेवौ नीचौ पड़ै, मेल रूप चवमास।।72।।
                      परसेवौ डीलां पड़ै, खुदै मजूरां खांन।
                        झरै कैरटा झाड़का, ओस बूंद उनमांन।।73।।
                      दल माटी कल रुप दब, निरख मजूरां नार।
                        भांण तपत भरती भरै, काली सड़क किनार।।74।।
                      गौरी काढै घूंघटो, हेवै पवन उघाड़।
                        ठेकेदार ठिठोरिया, मुलक छाय मुंफाड़।।75।।
                      सांचकली सरमावती, नयम झुकावै नार।
                        सरम बायरा सामनैा, देखै ठेकदार।।76।।
                      मिस तपास फिरता मिलै, मालिक च्यारूं मेर।
                        सुंदर तन री सुंदरी, गिरज दीठ लै घैर।।77।।
                      मैंणत मजदूरी मिलै, धकै पसेवै धार।
                        तपती लूवां तावड़ै, गाभा आला गार।।78।।
                      तावड़ लू धरती तपै, अवर तपै औजार।
                        तन मन लूवां तायबा, लगी मजूरां लार।।79।।
                      चवै पसीनौ चिपचिपै, तपती गाभा गेल।
                        खिपतौ सेवट खोलिया, दिया बांठकै मेल।।80।।                      
                      तपै मजूर उघाड़ तन, मैंणत मसती मांय।
कांई इणरौ लू करै, कालजयी आकाय।।81।।
                      मगन हुवा मैंणत मही, धरै न औरां ध्यांन।
                        तपवै मजूर तावड़ै, ऐ संतां उनमांन।।82।।
                      तन तपती काला किया, मन ऊजल भरपूर।
                        झालां लूवां झालवै, मिनख पणै मजदूर।।83।।
                      ऊकलियौ पांणी घड़ै, दीवड़ियां नीं दांम।
                        हफता दो दो होविया, मिली न एक छदांम।।84।।
                      तातौ 'टीफन' तावड़ै, भभक मथारै भांण।
                        रोटी चटणी रायता, खदबद हुयगा खांण।।85।।
                      जल ऊकलियौ पीण जित, लूवां री ललकार।
                        गलै ऊतरै गासिया, दोरा घम दौपार।।86।।
                      गलै अटकियौ गासियौ, मन पकियौ चख मूंद।
                        सूखै पेट मजूरियां, मालिक बधवै तूंद।।87।।
                      पेय ठंडा नित पीवणा, कारां घूमण रोज।
                        जीमै ठेकेदार थित, भांत भांत रा भोज।।88।।
                      नहीं लगावण रोटियां, पालौ चलणौ पंथ।
                        कोरी मटकी जल कठै, तपण मजूरां तंत।।89।।
                      ताता वासण वसण तन, नाडी तातौ नीर।
                        आंती जीवम आवगौ, तन सह ग्रीषम तीर।।90।।
                      आलय तातौ आंगणौ, धुकै मजूरां धीर।
                        झपटां लूवां री जबर, सूखै भुगत सरीर।।91।।
                      मास जेठ रिव मरुधरा, तावड़ रालै तेज।
                        बालै मजदूरां वपव, सकौ असर रह सेज।।92।।
                      टीपन रोट्यां टांकियौ, सहवै गरम समीर।
                        बैपारी करतां बगत, ससवादां नी सरी।।93।।
                      रही न छाछां राबड़ी, धैन भैंस बिन धांम।
                        मोलाणौ मजदूरियां, करड़ौ असकौ कांम।।94।।
                      चूंची लागी चारियै, लीधौ कालां लार।
                        अनमिलणौ दोरौ अठै, धीणौ किम लै धार।।95।।
                      बलबलती वायर बहै, खलकै बालै खाल।
                        ग्रीषम चौगड़दै घुरै, तड़फ मजूरां ताल।।96।।
                      लूवां मजदूरां लग्गू, हांकर लेवै हैर।
                        ओठौ लेवण नै अठै, कै सिणियौ कै कैर।।97।।
                      बालक कैरां बांटकां, व्है मजूर बेहाल।
                        ताती लूवा लाग तन, लाल होयगौ लाल।।98।।
                      ओढण झीणौ ओरणौ, रह लूवां नी रोक।
                        बोबावै घण बालक्या, धाक्या मायड़ थोक।।99।।
                      बोबो देतां बालकां, उर ना मात उछाह।
                        सुतन पयोधर सूखिया, चुंगावै बिन चाह।।100।।                      
                        
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